नाखून और मंत्रिपरिषद में समानता
Friday, August 05,
2016
मंत्री समझ नहीं पा रहे थे कि इस स्थिति का सामना कैसे किया जाए। तभी उन्हें विक्रम की याद आई। वह राजा का प्रिय था। उसने कई मौकों पर राजा का क्रोध शांत किया था। मंत्रियों ने विक्रम को सारी स्थिति समझाई और प्रार्थना की कि वह ऐसा कुछ करे जिससे राजा का विवेक जाग जाए।
विक्रम ने यह चुनौती स्वीकार कर ली। वह राजा के पास उनके नाखून काटने गया। राजा ने अपनी अंगुलियां आगे कर दीं। विक्रम ने नखों पर गुलाब जल छिड़का और धीरे-धीरे काटने लगा। फिर उसने कहा, 'महाराज, शरीर में इन नखों की आवश्यकता ही क्या है? वे बढ़ते रहते हैं और उन्हें बार-बार काटना पड़ता है। इनमें रोगों के कीटाणु भी रहते हैं। क्यों न इन्हें जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया जाए?'
राजा ने मुस्कराते हुए कहा,'वो तो है, लेकिन इन्हें उखाड़कर मत फेंक देना। ये तो हाथ-पैरों की शोभा हैं। भले ही इनका अधिक उपयोग न हो, पर ये आभूषणतुल्य हैं।' इस पर विक्रम ने कहा,'महाराज रोगों का घर होते हुए भी ये हाथ-पैरों की शोभा हैं। ठीक उसी तरह मंत्रिपरिषद राज्य की शोभा है। मंत्री भले आपके किसी कार्य का विरोध करें, पर आपकी शोभा उन्हीं से है।'
राजा उसकी ओर देखने लगे तो विक्रम ने फिर कहा, 'राज्य की सेवा में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। उनके बगैर राज्य बिना नखों के हाथ जैसा हो जाएगा।' राजा ने आदेश वापस लेकर मंत्रियों को फिर दायित्व सौंप दिए।
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