Thursday 1 September 2016

Hindi Story

मूल्यवान समय 


किसी सार्वजनिक संस्था के दाक सदस्य चर्चा के लिए गांधीजी के पास वर्धा पहुँचे। बातचीत में गाँधीजी को लगा कि छोटे से काम के लिए दो व्यक्तियों का उनके पास आना उचित नहीं है। गांधीजी से रहा न गया और दोनों से कह दिया ‘आप दोनों को तीन दिन रहने की जरूरत नहीं हैं। कोई एक व्यक्ति वापस लौट जाए।‘ दोनों आंगतुक एक-दूसरे की शक्ल देखते रह गए।



गांधीजी ने उन्हें समझाते हुए कहा- 'समय का अपव्यय करना सर्वथा अनुचित है। जिस समय एक व्यक्ति यहाँ काम कर रहा होगा, दूसरा व्यक्ति वापस जाकर वहाँ और कोई काम कर सकता है।' समय के इस महत्व को जानने के बाद वे लोग अपनी गलती समझ गए और उनमें से एक व्यक्ति फौरन वापस चला गया।




निष्कर्षः

यदि आप जीवन से प्रेम करते हैं तो समय को व्यर्थ ही नगवाएं, क्योंकि जीवन समय से बनता है और वह भी हर क्षण से-

क्षण-क्षण से बनता है जीवन
जैसे जल-बूंदी से सागर।
इस जीवन का कोई छोर नहीं
सो बहा चले जैसे सागर।

जो लोग दुनिया में आगे बढ़े हैं, उन्होंने फुर्सत के समय को भी कभी व्यर्थ न जाने दिया। उन्होंने अच्छा साहित्य पढ़कर अपना बौद्धिक सुधार किया और अच्छे साहित्य का सृजन किया।

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी जेल-यात्रा के दौरान 'Discovery of India'  की रचना की और अपनी बेटी प्रियदर्शिनी (इंदिरा गांधी) का ज्ञान पत्राचार के माध्यम से बढ़ाया।


“A man is wise with the wisdom of his time only”

-H.D. Thoreau (1817-62)
  

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