Wednesday 17 August 2016

Hindi Story

अंदरूनी विकास
17 Aug 2016
Hindi Story -अंदरूनी विकास
स्वामी रामतीर्थ उन दिनों अमेरिका में थे। एक दिन उनके पास एक महिला आई। वह आ तो गई थी, पर कुछ बोल पाने में असमर्थ थी। गहरे दुख ने उसकी आवाज को जकड़ रखा था। काफी देर वह यूं ही बैठी रही। इन क्षणों में रामतीर्थ भी उससे कुछ बोले नहीं, बस करुणापूर्ण नेत्रों से उसकी ओर देखते रहे।
उनकी करुणापूर्ण दृष्टि उस महिला को छू गई। उसका जमा हुआ विषाद पिघल उठा। दुख की परत आंसुओं में घुलने लगी। कुछ देर रोती ही रही। स्वामी रामतीर्थ उसे स्नेह भाव से निहारे जा रहे थे। उनके स्नेह की संजीवनी से वह जैसे-तैसे बोलने लायक हुई। भरे गले से उसने अपनी कथा सुनाई।
कथा का सार इतना ही था कि वह प्रेम में छली गई थी। तन-मन-धन-जीवन, सब कुछ न्योछावर करने के बाद भी उसे धोखा मिला था। उसकी बातें सुनने के बाद रामतीर्थ बोले- 'बहन, यहां हर कोई अपनी क्षमता के अनुसार ही बर्ताव करता है। जिसके पास जितनी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और भावनात्मक क्षमता है, वह उसी के अनुसार बर्ताव करने के लिए विवश है।
जिनकी भावनाएं स्वार्थ एवं कुटिलता से भरी हैं, वे तो बस क्षमा के पात्र हैं।' महिला का अगला प्रश्न था- 'तब क्या जीवन में सच्चा प्रेम पाना असंभव है?' स्वामी रामतीर्थ ने कहा, 'सच्चा प्रेम मिलता है, पर उन्हें जो सच्चा प्रेम करना जानते हैं।'
महिला ने कहा, 'मेरा प्रेम भी तो सच्चा था।' रामतीर्थ बोले- 'नहीं बहन, तुम्हारे प्रेम में स्वार्थ की मांग थी, उसमें किसी न किसी अंश में वासना भी घुली थी। सच्चा प्रेम तो सेवा, करुणा एवं श्रद्धा के रूप में ही प्रकट होता है।' रामतीर्थ की बातों का अर्थ उसकी समझ में आ गया। वह समझ गई कि प्रेम केवल दिया जाता हैं, उसमें पाने की मांग नहीं होती। इसके बाद वह एक अस्पताल में नर्स बन गई।
आईएएस की परीक्षा में धैर्य तीसरी बार अनुतीर्ण हो गया था। निराश होकर वह समुद्र के समीप पहुंचा और वहां उठती गिरती लहरों को निहारने लगा, तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। उसने पलटकर देखा तो अपने वृद्ध शिक्षक को सामने पाया। शिक्षक से उसने अपनी असफलता का जिक्र किया।
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उसकी बात सुनकर शिक्षक मुस्कराते हुए बोले, 'पहले मैं तुम्हें एक कहानी सुनाऊंगा। तुमने चीनी बांस का नाम जरूर सुना होगा। यह एक ऐसा पेड़ है जो बहुत लंबा हो जाता है, अस्सी फुट से ज्यादा ऊंचा। इसे अपनी पूरी ऊंचाई तक पहुंचने में लगभग पांच साल और तीन महीने लगते हैं। जब इस पौधे को रोपा जाता है तो बीज रोपने के बाद पांच साल तक किसी को कुछ दिखाई नहीं देता है, सिवाय एक छोटे से अंकुर के जो जड़ से फूट निकलता है और टेढ़ा-मेढ़ा खड़ा रहने के लिए संघर्ष करता है।
तुम्हें क्या लगता है कि बीज रोपने के पांच साल के अंदर उसमें कोई विकास नहीं होता?' यह सुनकर धैर्य बोला, 'सर, वह विकास सतह के नीचे होता रहता है। इस दौरान चीनी बांस की जड़ें एक जटिल जाल का निर्माण करती हैं।'
शिक्षक बोले, 'और यही मजबूत जड़ें पूरी तरह विकसित हो जाने पर, एक ऐसे पेड़ को संबल देने में मदद करती हैं जो अगले नब्बे दिन में आठ मंजिला इमारत के बराबर लंबा हो जाता है। इसका अंदरूनी विकास इसे दुनिया के सामने एक बलशाली और मजबूत पेड़ बना देता है।'
यह सुनकर धैर्य जैसे नींद से जागा, वह शिक्षक के चरण स्पर्श करते हुए बोला, 'सर आपने इस कहानी के द्वारा मेरी परेशानी का हल बता दिया है। सचमुच मेरी तीन साल की मेहनत बेकार नहीं जाएगी, मैं भी चीनी बांस की तरह बनकर दिखाऊंगा। शिक्षक को कोई हैरानी नहीं हुई जब चौथी बार धैर्य आईएएस की परीक्षा में प्रथम स्थान पर रहा।

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