सफलता की गरिमा
एपीजे अब्दुल कलाम के अथक प्रयासों से 'रोहिणी' का सफल प्रक्षेपण किया गया। इस सफलता ने न सिर्फ भारत की ख्याति में चार चांद लगा दिए अपितु कलाम साहब को भी कामयाबी के शिखर पर पहुंचा दिया। कलाम लोगों के बीच एक ऐसे लोकप्रिय वैज्ञानिक बन कर उभरे जो अपने सीधे-सादे सरल स्वभाव और कठोर परिश्रम के कारण विपरीत परिस्थितियों को भी अपने पक्ष में करना जानते थे।
उन्होंने कभी हारना न सीखा था। इस सरल स्वभाव के वैज्ञानिक से मिलने को अचानक सभी उत्सुक हो उठे थे। आए दिन कलाम साहब का बड़ी-बड़ी हस्तियों से मिलना होता था। एक दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रफेसर धवन को फोन किया और बोलीं,'मुझे कलाम से मिलना है।' उन्होंने प्रसन्नता के साथ यह खुशखबरी कलाम साहब को दे दी,'कलाम आपके लिए गर्व की बात है, प्रधानमंत्री आपसे स्वयं मिलना चाहती हैं। आपकी सफलता हर भारतीय को प्रभावित कर चुकी है।'
यह सुनकर कलाम प्रसन्न हो गए। लेकिन सहसा उनका चेहरा उदास हो गया। प्रफेसर धवन ने भांप लिया और पूछा,'यह अचानक उदासी कैसे छा गई?' कलाम बोले,'कुछ खास नहीं। आप तो जानते ही हैं, मेरे पास न खास सूट-बूट हैं और न अन्य प्रसाधन। साधारण पैंट-कमीज-चप्पल पहनता हूं। क्या प्रधानमंत्री के पास ऐसे जाना उचित रहेगा?' यह सुन प्रफेसर धवन जोर से हंस पड़े,'वाकई आप बेहद मासूम हैं। अरे आप जिस सफलता से सजे हुए हैं, उसके आगे अच्छे से अच्छे वस्त्र भी ना के बराबर हैं। जो आपके पास है, वह किसी और के पास नहीं। कल सुबह दिल्ली आ जाइए।' अब कलाम साहब भी प्रधानमंत्री से मिलने का मन बनाने लगे। बाद में वह स्वयं देश के प्रथम नागरिक बने।
No comments:
Post a Comment